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The Hunt For Veerappan Review: वीरप्पन के प्रेम की ‘क्रांतिकथा’, कैमरे को सूत्रधार बना सच के करीब पहुंची सीरीज

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Movie Review
द हंट फॉर वीरप्पन

कलाकार
मुथुलक्ष्मी
,
के विजय कुमार
,
टाइगर अशोक कुमार
और
सुनाद आदि

लेखक
फूरेस्ट बोरी
,
अपूर्वा बख्शी
,
किम्बरले हैसेट
और
सेल्वमणि सेल्वराज

निर्देशक
सेल्वमणि सेल्वराज

निर्माता
अपूर्वा बख्शी
और
मोनिषा त्यागराजन

ओटीटी
नेटफ्लिक्स

रिलीज

रेटिंग
4/5

वेब सारीज ‘द हंट फॉर वीरप्पन’ नेटफ्लिक्स को दक्षिण भारत से हुई मोहब्बत की नई बानगी है। ये कहानी कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु तक फैली है और इसमें हाथी दांत की तस्करी के बीच शुरू हुई एक प्रेम कथा दर्शकों को भावुक करते हुए वहां पहुंचती है जहां से किसी भी अपराधी के लिए लौटने का, दो बच्चियों के पिता बनकर रहने का या फिर लंबी सैर पर जाने का कोई रास्ता नहीं होता। जिन जंगलों मे सूरज की किरणों को भी धरती तक पहुंचने में मशक्कत करनी होती हो। वहां पहुंचना किसी इंसान के लिए कितना मुश्किल होता होगा? ऐसे ही माहौल में एक दिन कंधे पर लाठी की तरह एक बंदूक रखे लंबी लंबी मूछों वाले 39 साल के एक दुर्दांत अपराधी का दिल गांव की एक 15 साल की किशोरी पर आ जाता है। वह पूछता है, मुझसे शादी करोगी। लड़की सहम सी जाती है। वह फिर कहता है, ना कह दोगी तो अपने दिल को पत्थर कर लूंगा और फिर किसी दूसरी लड़की से शादी की बात भी नहीं सोचूंगा। ये लड़की है अपने इलाके की अनिंद्य सुंदरी मुथुलक्ष्मी और मूंछों वाला अपराधी, कूसे मनिस्वामी वीरप्पन उर्फ वीरप्पन।

The Hunt For Veerappan review in Hindi by Pankaj Shukla muthulakshmi K Vijay Kumar Tiger Ashok Kumar Krishna

द हंट फॉर वीरप्पन
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

वीरप्पन के मानवीय चेहरे की तलाश
नेटफ्लिक्स की नई वेब सारीज ‘द हंट फॉर वीरप्पन’ विचलित कर देने वाली कहानी कहती है। इस कहानी में वीरप्पन विलेन नहीं है। वह हालात का सताया हुआ एक वनवासी दिखता है जिसके अपराधों की सजा उसके आसपास आए हर शख्स ने भुगती। वह यहां पहली बार नजर का चश्मा लगाए भी दिखता है। चार एपिसोड में बंटी ये कहानी दर्शक को धीरे धीरे अपनी पकड़ में लेती है। शुरुआत वीरप्पन की पत्नी मुथुलक्ष्मी से होती है। ये पहला मौका है जब उन्होंने कैमरे पर आकर अपने दिल की बात बताई है। अपनी शादी से लेकर अपनी दोनों बेटियों के जन्म और उसके बाद लंबे समय तक वीरप्पन से दूर रहने और खुद वीरप्पन के उन पर शक करने की कहानी। वेब सारीज ‘द हंट फॉर वीरप्पन’ की ये अंतर्कथा एक प्रेम कहानी बनकर भी उभरती है। दोनों एक दूसरे को अपनी बात कैसेट के जरिये भेजते हैं। मुथुलक्ष्मी कैसेट पर नंबर डालना भूल जाती है तो वीरप्पन कहता भी है, नंबर डाल दिया करो ताकि मुझे पता तो चले कि कैसेट किस क्रम में सुनना है।

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The Hunt For Veerappan review in Hindi by Pankaj Shukla muthulakshmi K Vijay Kumar Tiger Ashok Kumar Krishna

मुथुलक्ष्मी द हंट फॉर वीरप्पन
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

सेल्वा की चार साल की मेहनत
तमिल फिल्म ‘निला’ (चांद) बना चुके निर्देशक सेल्वमणि सेल्वराज ने ये डॉक्युसीरीज किसी जुनून की तरह बनाई है। नेटफ्लिक्स की ही वेब सीरीज ‘दिल्ली क्राइम’ बना चुकीं अपूर्वा बख्शी और उनकी भागीदार मोनिषा त्यागराजन को सेल्वा ने अपनी दो साल की रिसर्च सुनाई तो दोनों चौंक गईं। चार साल तक सीरीज पर काम चला और अब ये नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। सेल्वमणि ने अपनी कहानी का आधार वीरप्पन पर लिखी गई किताबों, अखबारों में छपे आलेखों के अलावा कुछ ऐसी तस्वीरों को बनाया है जो शायद पहले कभी नहीं देखी गईं। और, इन तस्वीरों को जिस तरह परदे पर उतारा गया है, वह दर्शकों को ये कहानी परत दर परत महसूस करने पर बाध्य कर देता है। करीब एक हजार हाथियों की हत्या कर उनके दांतों की तस्करी करने वाला वीरप्पन यहां कभी असहाय दिखता है, कभी दो बच्चियों पर जान लुटाने वाला पिता तो कभी एक ‘क्रांतिकारी’!

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द हंट फॉर वीरप्पन
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

वीरप्पन का बेटियों के साथ घूमने का सपना
वैसे तो ‘अमर उजाला’ से बातचीत में सेल्वमणि सेल्वराज इस बात से इंकार करते हैं कि उनकी इस डॉक्युसीरीज का कोई एजेंडा नहीं है लेकिन उन पर वीरप्पन से जुड़ी कहानियों का जो प्रभाव दिखता है, उसमें कहीं कहीं ये सीरीज वीरप्पन के पक्ष में झुकती भी दिखती है। एक जगह अपनी पत्नी को भेजे जाने वाले कैसेट से वीरप्पन की आवाज सुनाई देती है, ‘मैं चाहता हूं कि मेरी बेटियां बड़ी हों। कार खरीदें। हम दोनों पीछे की सीट पर बैठे हों और हम सब लंबी यात्रा पर घूमते रहें।’ ये उस वीरप्पन की आवाज है जिसने करीब 200 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इनमें से आधे तो वनकर्मी और पुलिस वाले हैं। वह घात लगाकर हमला करने में माहिर दिखता है। अपने करीबी साथी को मारने वाले दरोगा शकील अहमद और  पुलिस के एक आला अफसर को गोलियों से भून देने वाली घटना सिहरा देने वाली है।

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द हंट फॉर वीरप्पन
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

जब बहन को हो गया वनअधिकारी से प्यार
सिहरा देने वाला वाक्या वह भी है जिसमें वीरप्पन की बहन को इलाके के वन अधिकारी से प्यार हो जाता है। दोनों मिलते हैं। साथ साथ घूमते हैं और गांव वालों के जरिये जब ये प्रेम कथा वीरप्पन के सामने प्रकट होती है तो वह अपनी बहन को हुक्म देता है कि वह वन अधिकारी की हत्या कर दे। बहन ऐसा नहीं कर पाती है और खुद अपनी जान दे देती है। इसके बाद वीरप्पन गांव में बेहद लोकप्रिय उस निहत्थे वन अधिकारी के साथ जो करता है, वह उसके अपराधों की सिर्फ एक बानगी है। वेब सारीज ‘द हंट फॉर वीरप्पन’ का क्लाइमेक्स वहां आकर दर्शकों को परेशान करना शुरू करता है जहां वह चे ग्वेरा और तमाम दूसरे कम्युनिस्ट नेताओं के बारे में जानकारी जुटाना शुरू करता है और तमिल हितों का अलमबरदार बनने के लिए कन्नड़ अभिनेता राजकुमार का अपहरण कर लेता है।

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द हंट फॉर वीरप्पन
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

तत्कालीन कर्नाटक सरकार का असहाय चेहरा

लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) प्रमुख प्रभाकरण के पास शरण पाने की उम्मीदों और उसके बाद जंगल से बाहर आने के चक्कर में मारे गए वीरप्पन पर बनी वेब सारीज ‘द हंट फॉर वीरप्पन’ का अपना एक एजेंडा है और इसमें वह काफी हद तक सफल भी होती दिखती है। परदे पर कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा की लाचारी और उनके साथ बार बार नजर आते मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष और कर्नाटक के तत्कालीन गृहमंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे को असहाय स्थिति मे दिखाना एक पूरे सिस्टम का एक दस्यु के सामने समर्पण की तरह सामने आता है। हां, उल्लेखनीय ये भी कि प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों व उनके परिवारों की रक्षा करने वाले एसपीजी का ही एक अफसर वीरप्पन का काल भी बनता है। सेल्वमणि को इस पूरी वेब सीरीज को प्रस्तुत करने में अपने सिनेमैटोग्राफर उदित खुराना की सबसे अधिक मदद मिली है। खुराना का कैमरा बहुत धीमी गति से चलते हुए कब दर्शकों को कहानी का हिस्सा बना लेता, पता ही नहीं चलता। जानु चंदर का पार्श्व संगीत पूरे माहौल को रहस्यमयी बनाने का खेल रचता है। वातावरण यहां एक किरदार भी है और पूरी कहानी का सूत्रधार भी। और, ये वातावरण ही है जो इस पूरी सीरीज को एक साथ देखने पर दर्शक को मजबूर कर देता है।

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Written by News Desk

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